सच्ची सेवा
✍ Daya Shankar
राजू का जन्म एक छोटे से गाँव में हुआ था, जहाँ न के बराबर था। लोग मानते थे कि ही उनका भाग्य है। लेकिन राजू की सोच अलग थी। वह जानता था कि शिक्षा के बिना कोई भी समाज आगे नहीं बढ़ सकता। उसने बचपन से ही ली और अपने गाँव के बच्चों को भी प्रेरित करने का सपना देखा।
राजू का सपना था कि वह एक दिन बनेगा और अपने गाँव के बच्चों को शिक्षित करेगा। जब वह बड़ा हुआ, तो उसने शिक्षक की नौकरी पाने के लिए मेहनत की और आखिरकार, गाँव के ही एक छोटे से स्कूल में शिक्षक बन गया। उस थी—टूटे हुए छप्पर, दीवारों पर उखड़ी हुई मिट्टी, और बच्चों के लिए बैठने की उचित व्यवस्था भी नहीं थी।
गाँव में शिक्षा के प्रति उदासीनता थी। लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजने की जगह खेतों में काम कराने को देते थे। राजू ने यह देखा और उसे बहुत दुःख हुआ। लेकिन उसने हार मानने का नाम नहीं लिया। वह गाँव के घर-घर जाकर बच्चों के से मिलता और उन्हें समझाता कि पढ़ाई कितनी जरूरी है।
राजू कहता, “अगर हम अपने बच्चों को शिक्षित करेंगे, तो वे हमारे जैसे कठिन जीवन नहीं जीएंगे। वे बड़े होकर डॉक्टर, इंजीनियर, या अफसर बन सकते हैं। और सबसे महत्वपूर्ण बात, वे हमारी और हमारे बदल सकते हैं।”
धीरे-धीरे राजू के शब्दों का असर होने लगा। कुछ अपने बच्चों को स्कूल भेजने लगे। हालांकि स्कूल में सुविधाओं की कमी थी, लेकिन राजू ने बच्चों को शिक्षा के प्रति उत्साहित रखने के लिए नए-नए तरीके ढूंढे। वह खेल-खेल में पढ़ाई कराता, से बच्चों को सिखाता, और हर बच्चे के लिए अलग-अलग तरीकों से पढ़ाई को रोचक बनाने की कोशिश करता।
कई महीने बीत गए और अब स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ने लगी। राजू की मेहनत रंग ला रही थी। गाँव में अब शिक्षा का महत्व समझा जाने लगा था। लोग राजू की करते नहीं थकते थे।
लेकिन तभी राजू के जीवन में एक बड़ा अवसर आया। उसे शहर के एक से नौकरी का प्रस्ताव मिला। यह स्कूल बड़े संसाधनों से लैस था, और वहाँ पढ़ाने का मतलब था एक शानदार करियर और अच्छा वेतन। राजू के लिए यह एक बड़ा मौका था।
लेकिन इस प्रस्ताव ने राजू के को एक बड़े संघर्ष में डाल दिया। अगर वह यह नौकरी स्वीकार करता, तो उसे अपने गाँव के बच्चों को छोड़ना पड़ता। शहर की नौकरी का आकर्षण उसे अपनी ओर खींच रहा था, लेकिन गाँव के बच्चों के प्रति उसकी जिम्मेदारी उसे रोक रही थी।
रातों की नींद हराम हो गई थी। राजू हर रात यह सोचता कि क्या सही है—शहर की नौकरी और अपनी , या गाँव में रहकर उन बच्चों की तरक्की की जिम्मेदारी जो उसे अपना भविष्य मानते थे? अंततः, राजू ने अपने दिल की सुनी। उसने शहर की नौकरी का प्रस्ताव ठुकरा दिया और गाँव में ही रहकर बच्चों को पढ़ाने का फैसला किया।
राजू का यह निर्णय आसान नहीं था, लेकिन वह जानता था कि उसकी सच्ची सेवा गाँव के बच्चों को शिक्षित करने में है। उसने अपनी सारी ऊर्जा गाँव के बच्चों के भविष्य को संवारने में लगा दी। उसने गाँव वालों से मदद मांगी और धीरे-धीरे स्कूल की स्थिति में सुधार होने लगा। गाँव के लोग अब शिक्षा के महत्व को समझने लगे थे और राजू का पूरा साथ देने लगे।
कई सालों की मेहनत के बाद, में आगे बढ़े और अच्छे पदों पर पहुँच गए। कुछ ने डॉक्टर, इंजीनियर, और शिक्षक बनने का सपना पूरा किया, तो कुछ ने सरकारी सेवाओं में उच्च पद हासिल किए। उन सभी बच्चों ने अपने गाँव का नाम रोशन किया और राजू की मेहनत और संकल्प को सार्थक बनाया।
आज भी, राजू अपने गाँव में रहता है, बच्चों को पढ़ाता है और उनके सपनों को साकार करने में मदद करता है। उसने यह साबित कर दिया कि सच्ची सेवा, और दृढ़ संकल्प से कोई भी मुश्किल पार की जा सकती है। उसकी कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर हम सही दिशा में मेहनत करें और दूसरों के भले के लिए काम करें, तो असंभव भी संभव हो सकता है।
राजू के इस निर्णय ने उसे न केवल बच्चों का हीरो बना दिया, बल्कि गाँव के विकास का स्तंभ भी। उसकी सच्ची सेवा और शिक्षा के प्रति समर्पण ने पूरे गाँव का भविष्य बदल दिया।