Story of Nagdevata: Faith and Duty

Story of Nagdevata: Faith and Duty

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नागदेवता की कहानी: आस्था और कर्तव्य

Daya Shankar

बहुत समय पहले की बात है, एक सुंदर और हरे-भरे गाँव में एक प्राचीन और पवित्र नागदेवता का मंदिर था। इस गाँव के लोग नागदेवता की पूजा करते थे और मानते थे कि नागदेवता उनकी हर संकट से रक्षा करते हैं। मंदिर के पास एक विशाल बरगद का पेड़ था, जिसके नीचे नागदेवता की प्रतिमा थी। यह जगह गाँव वालों के लिए अत्यंत पवित्र थी और वे वहाँ नियमित रूप से पूजा करने आते थे।

गाँव के पास एक घना जंगल था, जहाँ एक निर्धन किसान, रामदास, अपनी पत्नी सीता और पुत्र मुनिया के साथ रहता था। रामदास बहुत ही ईमानदार और मेहनती व्यक्ति था, लेकिन उसकी गरीबी उसकी मेहनत को फलने नहीं दे रही थी। रामदास ने कई बार नागदेवता से अपनी स्थिति सुधारने के लिए प्रार्थना की थी, लेकिन उसे ऐसा लगता था कि उसकी प्रार्थनाएँ अनसुनी रह गई हैं।

एक दिन, जब रामदास अपनी खेत से लौट रहा था, उसने देखा कि उसके खेत के पास एक छोटा-सा नाग बुरी तरह से घायल पड़ा है। उसकी हालत बहुत खराब थी और वह दर्द से तड़प रहा था। रामदास के दिल में करुणा उमड़ आई। उसने नाग को उठाया और अपने घर ले आया।

 

सीता (चिंतित होकर): “आप यह क्या लाए हो? नागदेवता का यह सर्प हमारे लिए खतरा हो सकता है। इसे हमें यहाँ नहीं रखना चाहिए।”

 

रामदास (शांत स्वर में): “सीता, यह एक घायल प्राणी है। हमें इसे बचाना चाहिए। नागदेवता भी यही चाहते होंगे कि हम उसकी सेवा करें। अगर हम इस प्राणी की मदद करेंगे, तो नागदेवता हमें आशीर्वाद देंगे।”

 

रामदास और सीता ने नाग का इलाज करना शुरू किया। कुछ ही दिनों में नाग की हालत सुधरने लगी। मुनिया, जो बहुत ही मासूम और प्यारा बच्चा था, उसने नाग से मित्रता कर ली। वह रोज़ नाग के पास जाकर उससे बातें करता और उसके लिए दूध लाता।

 

मुनिया (नाग से): “तुम्हें डरने की ज़रूरत नहीं है, मैं तुम्हारा दोस्त हूँ। जब तुम ठीक हो जाओगे, तो हम तुम्हें वापस जंगल में छोड़ देंगे।”

 

नाग ने मुनिया की बातों को ध्यान से सुना और उसकी मासूमियत से प्रभावित हुआ।

 

नाग (ध्यानमग्न होकर): “यह बालक बहुत प्यारा और दयालु है। मुझे इसके लिए कुछ करना चाहिए।”

कुछ ही दिनों में नाग पूरी तरह से स्वस्थ हो गया। रामदास ने उसे वापस जंगल में छोड़ने का निर्णय लिया। लेकिन जैसे ही नाग जाने लगा, उसने एक पल के लिए रुककर रामदास के परिवार की ओर देखा और फिर अचानक एक सुंदर, स्वर्णिम प्रकाश में बदल गया। रामदास, सीता, और मुनिया ने देखा कि वह नागदेवता स्वयं हैं, जो उनके सामने प्रकट हो गए थे।

 

नागदेवता (प्रसन्नता से): “रामदास, तुमने जो करुणा और सेवा की है, उससे मैं बहुत प्रसन्न हूँ। तुमने मुझे अपने घर में स्थान दिया, मेरा उपचार किया, और मेरे प्रति प्रेम और भक्ति का परिचय दिया। इसलिए मैं तुम्हें आशीर्वाद देने आया हूँ।”

 

रामदास और उसकी पत्नी सीता ने नागदेवता के चरणों में सिर झुका दिया।

रामदास (विनम्रता से): “प्रभु, यह हमारी जिम्मेदारी थी। हमने केवल अपने कर्तव्य का पालन किया है। कृपया हमें आशीर्वाद दें कि हम सदैव सही मार्ग पर चलें।”

 

नागदेवता (मुस्कुराते हुए): “तुम्हारी भक्ति और सेवा ने मुझे प्रसन्न किया है। मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूँ कि तुम्हारे जीवन में कभी भी धन, स्वास्थ्य और समृद्धि की कमी नहीं होगी। तुम्हारा परिवार सदैव सुखी और सुरक्षित रहेगा।”

 

इसके बाद नागदेवता ने रामदास को बहुत सारा सोना और संपत्ति दी और उन्हें आशीर्वाद दिया। उन्होंने मुनिया के सिर पर हाथ फेरा और उसे एक विशेष सुरक्षा कवच दिया, जिससे वह जीवन भर सुरक्षित रहेगा।

 

रामदास का जीवन पूरी तरह से बदल गया। वह अब बहुत धनी हो गया था, लेकिन उसने अपनी दयालुता, ईमानदारी, और सेवा भावना को नहीं छोड़ा। वह अपने गाँव के लोगों की मदद करने लगा और गाँव में भी कई समाजसेवी कार्य करने लगा। गाँव के लोग नागदेवता की कृपा से बहुत प्रसन्न हुए और सभी ने मिलकर एक बड़ा उत्सव मनाया।

 

रामदास (गाँव वालों से): “नागदेवता की कृपा से हमें सिखने को मिला है कि सच्ची सेवा और कर्तव्यपालन ही जीवन का सबसे बड़ा धन है। हमें सदैव करुणा और प्रेम से प्रेरित होकर कार्य करना चाहिए। तभी हमें सच्चे सुख और समृद्धि की प्राप्ति होगी।”

गाँव के सभी लोग रामदास की बातों से प्रेरित हुए और उन्होंने भी सेवा और भक्ति के मार्ग को अपनाने का प्रण किया। नागदेवता की कृपा से वह गाँव सदैव सुख, शांति, और समृद्धि से परिपूर्ण रहा।

 

इस तरह, नागदेवता की यह कथा हमें यह सिखाती है कि जब हम करुणा, प्रेम, और निस्वार्थ सेवा का मार्ग अपनाते हैं, तो हमें देवताओं की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। जीवन में सच्ची सफलता और शांति पाने का यही सबसे सही मार्ग है।

The End