
संक्षिप्त रामायण के कुछ मुख्य भाग: युद्धकांड-2
युद्धकांड रामायण का महत्वपूर्ण भाग है जिसमें राम और रावण के बीच एक भीषण युद्ध होता है। इस कांड में रावण के वीर योद्धाओं का वध, रावण का वध, और सीता की रिहाई के घटनाक्रम विस्तार से वर्णित हैं।
युद्ध की तैयारी
हनुमान और अंगद की लंका यात्रा के बाद, राम ने सीता की खोज की स्थिति के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त की और रावण के खिलाफ युद्ध की तैयारी शुरू की। वानर और भालू सेना के साथ, राम ने लंका की ओर मार्च किया।
राम (सेना को संबोधित करते हुए): “संगठित हो जाओ, हम लंका की ओर बढ़ रहे हैं। रावण ने सीता का हरण किया है और उसके पापों का प्रायश्चित करने का समय आ गया है।”
हनुमान (सहायता का आश्वासन देते हुए): “प्रभु, हम सब मिलकर रावण के खिलाफ युद्ध करेंगे। उसकी शक्ति को नष्ट करने के लिए हम पूरी तरह से तैयार हैं।”
युद्ध की शुरुआत
राम की सेना लंका पहुँची और युद्ध की तैयारी शुरू की। रावण ने अपनी सेना को तैयार किया और राम के हमले का सामना करने के लिए अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया। युद्ध की शुरुआत में, राम और रावण के बीच एक घमासान युद्ध शुरू हुआ।
रावण (सेना को आदेश देते हुए): “तैयार हो जाओ! राम और उनकी सेना को हराना हमारी प्राथमिकता है। वे मेरी शक्ति को चुनौती दे रहे हैं।”
राम (सैन्य को प्रेरित करते हुए): “हमारा लक्ष्य स्पष्ट है। रावण को हराना और सीता को मुक्त करना हमारा धर्म है। चलो, लड़ाई में अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन दिखाते हैं।”
रावण के योद्धाओं का वध
युद्ध के दौरान, राम की सेना ने रावण के वीर योद्धाओं का सामना किया। सबसे पहले, रावण के प्रमुख योद्धा कुम्भकर्ण और मेघनाथ ने युद्ध में भाग लिया। राम और लक्ष्मण ने इन योद्धाओं को हराने के लिए अपनी पूरी ताकत लगाई।
कुम्भकर्ण (लक्ष्मण से): “तुम्हारे जैसे क्षत्रिय का सामना करना मेरे लिए एक चुनौती है। मैं तुम्हें दिखाऊंगा कि मेरी शक्ति क्या है।”
लक्ष्मण (दृढ़ता से): “कुम्भकर्ण, तुम्हारी शक्ति की पहचान मैं कर चुका हूँ। लेकिन आज तुम्हारा अंत निश्चित है।”
कुम्भकर्ण और मेघनाथ के वध के बाद, रावण ने और भी शक्ति जुटाने का प्रयास किया लेकिन राम और लक्ष्मण की वीरता ने रावण की सेना को हराना शुरू कर दिया।
राम और लक्ष्मण का नागपाश में कैद होना और हनुमान का संजीवनी बूटी लाना
रामायण का यह भाग न केवल वीरता और संकल्प की कहानी है, बल्कि मित्रता, कर्तव्य और निष्ठा का भी अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है। इस घटना में राम और लक्ष्मण का नागपाश में बंधन, हनुमान का संजीवनी बूटी की खोज में जाना और संजीवनी लाकर उन्हें पुनः जीवित करना शामिल है।
राम और लक्ष्मण का नागपाश में कैद होना
मेघनाथ, रावण का पुत्र, एक महान योद्धा था जिसने राम और लक्ष्मण को नागपाश में बांध दिया। नागपाश एक ऐसा दुष्ट अस्त्र था जो नागों के जाल से बना था और बहुत ही शक्तिशाली था।
मेघनाथ (हंसते हुए): “राम और लक्ष्मण, अब तुम मेरे नागपाश से नहीं बच सकते। यह नागपाश तुम्हें मार डालेगा।”
राम और लक्ष्मण नागपाश में बंधे हुए थे और उनकी सेना चिंतित थी।
विभीषण द्वारा सुषेण वैद्य के बारे में जानकारी देना
रामायण में विभीषण की भूमिका महत्वपूर्ण है, क्योंकि उन्होंने राम की सेना को रावण और उसके अनुचरों की कमजोरियों और रहस्यों के बारे में जानकारी दी। यहाँ, विभीषण ने ही हनुमान को सुषेण वैद्य के बारे में बताया, जिससे राम और लक्ष्मण का उपचार हो सका।
राम और लक्ष्मण का नागपाश में बंधन
जब मेघनाथ ने राम और लक्ष्मण को नागपाश में बांध दिया, तो उनकी सेना चिंतित हो उठी। राम और लक्ष्मण बेसुध हो गए थे और उनके जीवन को खतरा था।
हनुमान (चिंतित स्वर में): “प्रभु राम और लक्ष्मण को इस नागपाश से कैसे मुक्त किया जाए? हमें कुछ करना होगा।”
विभीषण का आगमन
विभीषण, जो रावण का भाई था और राम की सेना के साथ आ मिला था, तुरंत स्थिति का आकलन करने के लिए आया।
विभीषण (गंभीर स्वर में):* “हनुमान, यह नागपाश बहुत ही घातक है। इसका तोड़ तुरंत निकालना होगा।”
हनुमान ने विभीषण से पूछा:
हनुमान (उत्सुकता से): “विभीषण, क्या कोई उपाय है जिससे राम और लक्ष्मण को इस नागपाश से मुक्त किया जा सके?”
सुषेण वैद्य के बारे में जानकारी
विभीषण ने तुरंत हनुमान को एक समाधान बताया:
*विभीषण (सोचते हुए):* “लंका में एक महान वैद्य हैं, सुषेण। वे इस नागपाश का तोड़ जानते हैं। हमें उन्हें यहाँ लाना होगा।”
*हनुमान (दृढ़ स्वर में):* “मैं तुरंत सुषेण वैद्य को लेकर आता हूँ।” (हनुमान ने विश्वास से कहा)
हनुमान का लंका जाना
हनुमान तुरंत लंका की ओर उड़ान भरी और सुषेण वैद्य के घर पहुंचे।
हनुमान (सुषेण वैद्य से): “हे वैद्यराज, प्रभु राम और लक्ष्मण नागपाश में बंधे हुए हैं और उनके जीवन को खतरा है। कृपया चलकर उनका उपचार करें।”
सुषेण वैद्य ने तुरंत हामी भरी और हनुमान के साथ चलने को तैयार हो गए।
सुषेण वैद्य (संजीदगी से): “हनुमान, मुझे तुरंत वहां ले चलो। मैं प्रभु राम और लक्ष्मण का उपचार करूंगा।”
सुषेण वैद्य का उपचार
सुषेण वैद्य ने राम और लक्ष्मण का परीक्षण किया और तुरंत उपचार प्रारंभ किया।
सुषेण वैद्य (हनुमान से): “हनुमान, हमें संजीवनी बूटी की आवश्यकता है, जो केवल हिमालय के द्रोणगिरी पर्वत पर पाई जाती है। इसे तुरंत लाना होगा।”
हनुमान ने बिना विलंब के पर्वत की ओर प्रस्थान किया और अपने अद्वितीय पराक्रम से संजीवनी बूटी लेकर वापस आए।
हनुमान (पर्वत उठाते हुए): “मैं संजीवनी बूटी के साथ पूरा पर्वत ही ले आता हूँ, ताकि वैद्यराज सही औषधि चुन सकें।”
राम और लक्ष्मण का पुनः स्वस्थ होना
सुषेण वैद्य ने संजीवनी बूटी का उपयोग कर राम और लक्ष्मण का उपचार किया। कुछ ही समय में वे पुनः स्वस्थ हो गए।
राम (सुषेण वैद्य से): “हे वैद्यराज, आपका आभार। आपने हमें जीवनदान दिया है।”
लक्ष्मण (विभीषण से): “विभीषण, आपके सहयोग के बिना यह संभव नहीं था। आपका धन्यवाद।”
(विभीषण ने विनम्रता से उत्तर दिया)
विभीषण (नम्र स्वर में): “यह मेरा कर्तव्य था, राम। मैं धर्म और सत्य के मार्ग पर हूँ और आपके साथ हूँ।”
युद्ध का पुनः आरंभ
राम और लक्ष्मण के स्वस्थ होने के बाद, युद्ध पुनः आरंभ हुआ। राम की सेना ने पूरे जोश और उत्साह के साथ रावण की सेना का सामना किया।
राम (अपनी सेना से): “अब हम पूरी शक्ति से लड़ेंगे और धर्म की रक्षा करेंगे। विजय हमारा लक्ष्य है।”
लक्ष्मण (उत्साहपूर्वक): “हमारी विजय सुनिश्चित है। हम अपने विश्वास और साहस के साथ लड़ेंगे।”
रावण के रहस्यों का उद्घाटन
विभीषण ने राम को रावण के रहस्यों के बारे में बताया, जिससे राम को युद्ध में महत्वपूर्ण सहायता मिली।
विभीषण (राम से): “प्रभु, रावण को पराजित करने का सबसे महत्वपूर्ण तरीका यह है कि रावण के नाभि में अमृत कलश है, उसको निशाना बनाइये। रावण का अंत निश्चित है। यह उसकी सबसे बड़ी कमजोरी है।”
राम (गंभीरता से): “विभीषण,आपकी जानकारी बहुत महत्वपूर्ण है। इससे हमें रावण को पराजित करने में मदद मिलेगी।”
राम और रावण का युद्ध
राम और रावण के बीच भीषण युद्ध हुआ। विभीषण के मार्गदर्शन और राम की दिव्य शक्तियों के साथ, राम ने रावण के योद्धाओं का वध किया।
अंततः, युद्ध की दिशा रावण के खिलाफ हो गई। राम ने रावण के शक्तिशाली रथ और रक्षकों को नष्ट किया। रावण ने अपनी पूरी शक्ति और रणनीति लगाकर राम का सामना किया, लेकिन राम की अद्वितीय शक्ति और रणनीति ने रावण को कमजोर कर दिया।
रावण (राम से): “तुम्हारी शक्ति ने मेरी सेना को हरा दिया है, लेकिन मैं अभी भी जीवित हूँ। तुम मुझे कैसे पराजित कर सकते हो?”
राम (साक्षात्कार करते हुए): “रावण, तुम्हारी शक्ति ने तुम्हें अहंकार और पाप की ओर ले जाकर तुम्हारी तबाही का कारण बना दिया है। तुम्हारा अंत अब अनिवार्य है।”
राम ने अपने बाणों से रावण के दस सिरों में से एक-एक कर हटा दिए। पर उसको कुछ नहीं हुआ, अंत में श्री राम ने विभीषण के कहने पर रावण के नाभि पर निशाना लगाया, और बाण चला दिया।और अब रावण अपनी आखिरी सांस ले रहा था।
रावण का अंतिम उपदेश
रामायण के अनुसार, जब राम और रावण के बीच का महायुद्ध समाप्त हो चुका था और रावण अपने अंतिम समय में था, तो भगवान राम ने लक्ष्मण से कहा कि वे रावण के पास जाकर ज्ञान प्राप्त करें, क्योंकि रावण एक महान विद्वान और ज्ञानी था और उसके पास जीवन के अनमोल ज्ञान थे। अपने अंतिम समय में रावण लक्ष्मण को महत्वपूर्ण उपदेश देता है। रावण अपने अंतिम समय में लक्ष्मण को जो उपदेश देता है, वह जीवन की महत्वपूर्ण सच्चाइयों को उजागर करता है। यह घटना हमें यह सिखाती है कि ज्ञान प्राप्ति का अवसर किसी भी समय और किसी भी व्यक्ति से मिल सकता है, भले ही वह शत्रु ही क्यों न हो।
रावण के पास लक्ष्मण का जाना
राम के आदेश पर, लक्ष्मण रावण के पास गए। उन्होंने अपने बड़े भाई के आदेश का पालन करते हुए रावण के पास जाकर विनम्रता से कहा:
लक्ष्मण (रावण के पास जाकर, सिर झुकाकर): “हे रावण, मैं आपके शत्रु राम का छोटा भाई लक्ष्मण हूँ। मेरे भाई ने कहा है कि मैं आपसे जीवन के कुछ महत्वपूर्ण उपदेश प्राप्त करूँ। कृपया मुझे अपने ज्ञान से लाभान्वित करें।”
1.समय का महत्व
रावण, अपने अंतिम क्षणों में, लक्ष्मण के इस निवेदन पर गहन सोच में पड़ गया और फिर उसने गंभीरता से कहा:
रावण (गहरी आवाज में): “हे लक्ष्मण, सबसे पहली बात जो तुम्हें याद रखनी चाहिए वह है समय का महत्व। समय सबसे कीमती है, इसे कभी व्यर्थ न गवाना। मैंने अपने जीवन में समय का महत्व नहीं समझा और अंत में मुझे इसका खामियाजा भुगतना पड़ा।”
“हे लक्ष्मण, सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात यह है कि समय का सदुपयोग करो। मैंने बहुत समय बर्बाद किया और अधर्म के मार्ग पर चला। यदि मैंने समय रहते सही मार्ग चुना होता, तो मेरा जीवन और राज्य बच सकता था।”
2.शुभ कार्य में देरी नहीं करनी चाहिए
रावण (आँखों में पश्चाताप के साथ): “शुभ कार्यों को तुरंत करना चाहिए। मैंने कई शुभ अवसरों को टाल दिया और उसका परिणाम यह हुआ कि मैंने सब कुछ खो दिया। जब भी कोई अच्छा काम करने का अवसर मिले, उसे बिना देरी के कर डालना चाहिए।”
“शुभ कार्यों में कभी भी देरी नहीं करनी चाहिए। जब भी कोई अच्छा कार्य करने का समय आए, उसे तुरंत कर लेना चाहिए। मैंने अपने जीवन में कई शुभ अवसरों को गवां दिया और अंत में इसका परिणाम भुगतना पड़ा।”
3.अहंकार का त्याग
रावण (अपने अनुभव से, दर्द भरी आवाज में): “अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। मैंने अपने अहंकार के कारण अपने परिवार, राज्य और जीवन को खो दिया। हमेशा विनम्र रहो और अहंकार से दूर रहो। अहंकार ही मेरे पतन का कारण बना।”
4.धर्म और कर्तव्य का पालन
रावण (ध्यानमग्न होकर): “धर्म और कर्तव्य का पालन हमेशा सबसे पहले करना चाहिए। मैंने अधर्म का मार्ग चुना और उसका परिणाम यह हुआ कि मुझे पराजय और विनाश का सामना करना पड़ा। धर्म के मार्ग पर चलना ही सच्चा पथ है।”
5.विद्या और ज्ञान की महत्ता
रावण (अंतिम उपदेश देते हुए): “विद्या और ज्ञान का सदुपयोग करो। मैंने अपने ज्ञान का दुरुपयोग किया और इसका परिणाम यह हुआ कि मैं विनाश के कगार पर हूँ। सही दिशा में ज्ञान का उपयोग करने से ही जीवन में सच्ची सफलता प्राप्त होती है।”
लक्ष्मण की प्रतिक्रिया
लक्ष्मण ने रावण के उपदेशों को ध्यान से सुना और उनके महत्वपूर्ण संदेशों को आत्मसात किया। उन्होंने विनम्रता से कहा:
लक्ष्मण (विनम्रता से): “हे रावण, आपके उपदेशों के लिए धन्यवाद। मैं आपके शब्दों को अपने जीवन में अपनाने का प्रयास करूंगा। आपका ज्ञान अमूल्य है।”
राम के पास लौटना
लक्ष्मण रावण के उपदेश सुनकर राम के पास लौटे और उन्हें रावण के अंतिम संदेशों के बारे में बताया। राम ने लक्ष्मण की बातों को ध्यान से सुना और कहा:
राम (गंभीरता से): “लक्ष्मण, रावण ने तुम्हें जीवन के सबसे महत्वपूर्ण पाठ सिखाए हैं। हमें इन उपदेशों को अपने जीवन में अपनाना चाहिए और दूसरों को भी इनसे सीखने के लिए प्रेरित करना चाहिए।”
रावण के अंतिम उपदेश हमें यह सिखाते हैं कि जीवन में समय का सदुपयोग, शुभ कार्यों में तत्परता, अहंकार का त्याग, धर्म और कर्तव्य का पालन, और विद्या एवं ज्ञान का सही उपयोग ही सच्चे मार्गदर्शक सिद्धांत हैं। रावण के इन उपदेशों से लक्ष्मण ने जीवन के महत्वपूर्ण पाठ सीखे और यह घटना हमें यह याद दिलाती है कि ज्ञान किसी भी रूप में, कहीं से भी, किसी भी समय प्राप्त किया जा सकता है।
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