संक्षिप्त रामायण के कुछ मुख्य भाग:उत्तरकांड
उत्तरकांड रामायण का अंतिम भाग है जिसमें अयोध्या लौटने के बाद राम का राज्य पुनर्गठन, सीता की अग्निपरीक्षा, उनका वनवास, और लव-कुश की कथा का वर्णन है। इस कांड में राम का अंतकाल भी वर्णित है जब वे वैकुंठ धाम चले जाते हैं। आइए इस कांड के प्रमुख घटनाक्रमों को विस्तार से समझते हैं:
अयोध्या में राज्य पुनर्गठन
राम के अयोध्या लौटने के बाद, नगरवासियों ने उनका भव्य स्वागत किया। उन्होंने राजा दशरथ की गद्दी संभाली और राज्य की स्थिति को सुधारने के लिए कई कदम उठाए। राम ने न्याय और धर्म की स्थापना के लिए कई नीतियाँ बनाई और प्रजा के कल्याण के लिए काम किया।
राम (नागरिकों से): “आप सभी का स्वागत है। हम सब मिलकर इस नगर को और भी समृद्ध बनाएंगे। आपके सुख और सुरक्षा के लिए हम हर संभव प्रयास करेंगे।”
नागरिक (खुश होकर): “राजा राम, आपके लौटने से हमें बहुत खुशी मिली है। हम आपकी नीतियों का समर्थन करेंगे और आपके आदेशों का पालन करेंगे।”
सीता का वनवास
राज्य में भ्रांतियाँ उत्पन्न होने के कारण, कुछ नागरिकों ने सीता की अग्निपरीक्षा के बावजूद उनके वनवास की मांग की। राम ने अपनी जिम्मेदारी और राज्य की स्थिरता को ध्यान में रखते हुए, सीता को वनवास पर भेजने का निर्णय लिया। सीता ने अपने बच्चों लव और कुश के साथ वनवास का सामना किया।
राम (सीता से): “मुझे दुख हो रहा है, लेकिन राज्य की भलाई के लिए तुम्हें वनवास पर भेजना आवश्यक है।”
सीता (आश्चर्यचकित होकर): “प्रभु, क्या आपने मुझे इतनी दयनीय स्थिति में देखा है? लेकिन मैं आपके आदेशों का पालन करूंगी।”
लव-कुश की कथा
वनवास के दौरान, सीता ने अपने पुत्र लव और कुश को जन्म दिया और उन्हें अच्छे और उच्च संस्कार दिए। लव और कुश ने अपने पिता के राज्य की कथा सुनी।सीता का वनवास कठिन परिस्थितियों से भरा था। आश्रम में रहते हुए, सीता ने अपने पुत्रों को धर्म, सत्य, और वीरता की शिक्षा दी।
सीता (लव और कुश को): “मेरे पुत्रों, तुम्हें सत्य और धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए। तुम दोनों को अपने पिता की वीरता और कर्तव्य की शिक्षा से परिचित होना चाहिए।”
लव (सीता से): “माँ, हम आपकी बातों को सुनकर और आपकी शिक्षा से प्रेरित होकर अपने जीवन को सही मार्ग पर चलेंगे।”
कुश (सीता से): “माँ, हम आपके द्वारा सिखाए गए आदर्शों को अपने जीवन में उतारेंगे और उन पर गर्व करेंगे।”
अश्वमेघ यज्ञ और लव-कुश का प्रतिरोध
प्रभु श्री राम ने बनवास के बाद जब माता सीता का त्याग करके वन में भेजा तो वह रामतीर्थ स्थित महाऋषि भगवान वाल्मीकि जी के आश्रम में गईं और वहां पर लव-कुश बालकों ने जन्म लिया। इसके बाद प्रभु श्री राम ने अयोध्या का राज्य संभालने के लिए अश्वमेध यज्ञ किया और घोड़े के गले में लिखा गया कि इस घोड़े को अगर कोई घोड़े को पकड़ेगा तो उसे युद्ध करना होगा। उन दिनों बीर बालक लव-कुश इस स्थान पर आकर खेलते थे और युद्ध अभ्यास करते थे। जब उन्होंने यज्ञ का घोड़ा देखा तो उसे पकड़कर बांध लिया। घोड़े के पीछे आए सैनिकों ने दोनों बालकों को घोड़े को छोड़ने के लिए कहा।
परंतु वह नहीं माने और घोड़े को अपने साथ रामतीर्थ स्थित आश्रम में ले गए। सैनिक ने इसकी जानकारी लक्ष्मण जी और हनुमान जी को दी। लक्ष्मण ने भी घोड़े को छोड़ने के लिए लवकुश को कहा, पर वे नहीं माने।
आखिर युद्ध में लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए। इसके बाद हनुमान जी को भी लवकुश ने बांध लिया और सेना को मूर्छित कर दिया। इसका पता जब प्रभु श्री राम को चला तो वह बालकों को देखने खुद इस स्थान पर पहुंचे। उस समय इस स्थान पर छोटा सा तालाब था, उसमें स्नान करने के बाद श्री राम ने दोनों बालकों को युद्ध के लिए ललकारा। पिता-पुत्रों के बीच युद्ध हो और मर्यादा बनी रही। इसलिए महाऋषि भगवान वाल्मीकि जी माता सीता को लेकर इस स्थान पर पहुंचे और सारी बात बताई। प्रभु राम ने इसी तालाब में से जल लेकर लक्ष्मण और सारी सेना पर छिड़क कर मूर्छना से मुक्त करके हनुमान जी को छुड़ाया।
सीता का युद्ध रोकना और राम से मुलाकात
सीता ने जब सुना कि लव और कुश और राम की सेना के बीच युद्ध हो रहा है, तो उन्होंने युद्ध को रोकने के लिए हस्तक्षेप किया।
सीता (लव और कुश को): “मेरे पुत्रों, यह युद्ध नहीं होना चाहिए। हमें शांति और समझौते की दिशा में प्रयास करना चाहिए।”
सीता ने राम से मिलने का निर्णय लिया। जब राम ने सीता को देखा, तो वह चकित हो गए और भावुक हो उठे।
राम (सीता से): “सीता, यह क्या हुआ? तुम्हारे बिना हमारे परिवार में एक खालीपन था।”
सीता (राम से): “प्रभु, मैंने आपके पुत्रों को अच्छे संस्कार दिए हैं और वे आपके सामने हैं। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि वे आपके सत्य और धर्म की राह पर हैं।”
सीता का धरती में समाना और लव-कुश का अयोध्या में वापसी
सीता ने राम को लव और कुश सौंपे और धरती माता से विदा ले ली। सीता ने धरती में समाने के लिए प्रार्थना की और धरती माता ने उन्हें अपने अंदर समा लिया।
सीता (धरती से): “हे धरती माता, मैं तुम्हारे गर्भ में समाना चाहती हूँ और मेरे पुत्रों को उनके पिता की देखरेख में सौंपती हूँ।”
धरती माता (सीता से): “सीता, तुम्हारी तपस्या और बलिदान का मैं सम्मान करती हूँ। तुम्हारी आत्मा शांति पाएगी और तुम्हारे पुत्रों को एक अच्छा भविष्य मिलेगा।”
सीता के धरती में समाने के बाद, लव और कुश को अयोध्या में सम्मानपूर्वक स्वागत किया गया। राम ने उन्हें उच्च स्थान दिया और अपने राज्य का उत्तराधिकारी बनाया।
लव (राम से): ” पिता श्री, हमें आपके राज्य में स्वागत पाकर गर्व हो रहा है। हम आपके आदेशों का पालन करेंगे और राज्य की सेवा में रहेंगे।”
राम (लव और कुश से): “मेरे पुत्रों, तुम दोनों की वीरता और सत्य के प्रति निष्ठा ने हमें गर्वित किया है। तुम्हारे आने से हमारे परिवार और राज्य को नई शक्ति मिली है।”
राम ने लव और कुश के राज्याभिषेक की तैयारी शुरू कर दी। सभी राज्याधिकारियों और प्रमुखों ने इस अवसर पर खुशी जताई और एक भव्य समारोह की योजना बनाई गई।
राम का सरयू नदी में समाधि का निर्णय
राज्य का संचालन लव और कुश के हवाले करने के बाद, राम ने अपने जीवन का अंतिम अध्याय समाप्त करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने जीवन की अंतिम यात्रा के रूप में सरयू नदी को चुना, जो उन्हें मोक्ष का मार्ग दिखा सकती थी।
राम (लक्ष्मण से): “भाई, मैं अब अपनी देह को छोड़कर मोक्ष की प्राप्ति के लिए सरयू नदी में समाधि लेने जा रहा हूँ। यह समय है कि मैं इस संसार से विदा लूँ।”
लक्ष्मण (वेदना से): “प्रभु, यह आपके बिना अयोध्या और मैं कैसे रहेंगे? हमें आपकी आवश्यकता हमेशा रहेगी।”
राम (सहज भाव से): “लक्ष्मण, यह जीवन और मृत्यु का चक्र है। हर प्राणी को इस यात्रा को पार करना होता है। मैंने अपना कर्तव्य पूरा किया है, और अब समय आ गया है कि मैं धरती को छोड़ दूँ।”
राम का समाधि लेने का स्थल
राम ने सरयू नदी के तट पर जाने के लिए अपने सभी अनुयायियों और परिवार के सदस्यों को बुलाया। सभी ने शोक के साथ और श्रद्धा के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी।
हनुमान (अश्रुपूरित आंखों से): “प्रभु, आपकी भक्ति और सेवा का मैं ऋणी हूँ। आपके बिना अयोध्या का जीवन अधूरा रहेगा।”
भरत (कातर स्वर में): “भाई, आपने हमारे लिए बहुत कुछ किया है। हमें आपकी याद हमेशा रहेगी।”
राम,लक्ष्मण,भरत, और शत्रुघ्न ने अपनी अंतिम यात्रा शुरू की और नदी के तट पर पहुंचकर उन्होंने अपने शरीर को त्यागने का निर्णय लिया। उन्होंने सरयू नदी में प्रवेश किया और धीरे-धीरे जल में समाहित हो गए।
राम (अंतिम शब्दों में): “हे सखा और प्रियजनों, मैं अब इस संसार से विदा लेता हूँ। मेरे आदर्शों को अपनाते हुए अपने जीवन को आगे बढ़ाओ।”
राम के बाद का अयोध्या
राम के समाधि लेने के बाद, अयोध्या में एक नई शुरुआत हुई। लव और कुश ने राजकाज संभाला और राज्य में न्यायपूर्ण शासन स्थापित किया। राम के उपदेश और आदर्शों का अनुसरण करते हुए, अयोध्या ने समृद्धि और शांति का मार्ग अपनाया।
लव (राज्यसभा में): “हम अपने पिताजी के आदर्शों का अनुसरण करेंगे और उनके दिखाए मार्ग पर चलेंगे। अयोध्या की समृद्धि और खुशहाली की हम गारंटी देंगे।”
कुश (संबोधित करते हुए): “हमारा शासन आपके लिए न्यायपूर्ण और समर्पित रहेगा। हम अपनी पूरी ताकत और ईमानदारी से राज्य की सेवा करेंगे।”
राम का लव और कुश को राज्य सौंपना और सरयू नदी में समाधि लेना एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करता है कि कैसे एक राजा अपने कर्तव्यों का निर्वाह करता है और फिर अपने जीवन का अंत भी आदर्श तरीके से करता है। यह घटना जीवन के अंतिम चरण की सुंदरता और संपूर्णता को दर्शाती है, और हमें सिखाती है कि कैसे अपने आदर्शों और कर्तव्यों को पूरा करते हुए जीवन का समापन करना चाहिए।
The End