Few Main Parts Of Abridged Ramayana: Sunderkand

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संक्षिप्त रामायण के कुछ मुख्य भाग: सुंदरकांड

सुंदरकांड रामायण का एक महत्वपूर्ण भाग है जिसमें हनुमान की लंका यात्रा, सीता की खोज, रावण से बातचीत, और लंका का दहन शामिल है। इस कांड में हनुमान की वीरता और निष्ठा के अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किए गए हैं।

सीता की खोज

बालि के वध के बाद, सुग्रीव किष्किंधा का राजा बना और उसने वानर सेना तैयार की। हनुमान और अन्य वानरों को सीता की खोज के लिए चारों दिशाओं में भेजा गया।

सुग्रीव (वानर सेना से): “सीता की खोज के लिए हम सभी को मिलकर प्रयास करना होगा। हनुमान, अंगद, जाम्बवंत, नील और नल, तुम सभी विभिन्न दिशाओं में जाओ और सीता का पता लगाओ।”

हनुमान, अंगद, जाम्बवंत, नील और नल दक्षिण दिशा की ओर चले गए, जहां उन्हें समुद्र पार लंका का पता चला।

हनुमान का लंका प्रवास

हनुमान ने समुद्र को पार कर लंका पहुँचने का संकल्प लिया। उन्होंने अपनी शक्ति को याद किया और विशाल रूप धारण कर लंका की ओर उड़ चले।

 

हनुमान ने सीता की खोज के लिए लंका की ओर प्रस्थान किया। वह समुद्र को पार करके लंका पहुँचा और वहाँ अपने आकार को छोटा कर लिया ताकि वह आसानी से अन्दर जा सके। लंका में प्रवेश करने के बाद, उसने देखा कि लंका एक समृद्ध और खूबसूरत नगरी है, लेकिन यहाँ अंधकार और बुराई का साम्राज्य छाया हुआ है।

हनुमान (स्वयं से): “यहाँ की समृद्धि और सुंदरता के बावजूद, यह नगरी बुराई के चंगुल में है। मुझे सीता की खोज करनी होगी और रावण की शक्ति का आकलन करना होगा।”

सीता की खोज

हनुमान ने लंका में जगह-जगह खोजबीन की। अंततः, उसने अशोक वाटिका में सीता को पाया। सीता की स्थिति को देखकर हनुमान ने उन्हें आश्वस्त किया और राम का संदेश दिया और उन्हें सांत्वना दी।
हनुमान (अपने मन में): “माता सीता, आपके दर्शन का यह अवसर मेरे जीवन का सबसे बड़ा सुख है।”

सीता (आश्चर्यचकित होकर): “हे वानर, तुम यहाँ कैसे आए? क्या राम ने तुम्हें भेजा है?”

हनुमान (सहायता का आश्वासन देते हुए): “माता सीता, मैं राम का दूत हूँ। राम और लक्ष्मण आपकी खोज में हैं और जल्द ही यहाँ आएंगे। उन्होंने मुझे आपके पास भेजा है। कृपया इस अंगूठी को स्वीकार करें, यह राम की निशानी है।”

सीता (आश्वस्त होकर): “धन्यवाद, हे हनुमान, राम के इस संदेश से मुझे बहुत शांति मिली है। कृपया उन्हें मेरा संदेश दें कि बताएं कि मैं यहाँ लंका में बंदी हूँ।और मैं यहाँ उनकी प्रतीक्षा कर रही हूँ।”

हनुमान ने सीता को सांत्वना दी और राम का संदेश दिया। इसके बाद, हनुमान ने रावण की सभा में जाने का निश्चय किया और लंका के बगीचे में अपने बल का प्रदर्शन करने की योजना बनाई।

हनुमान ने रावण के विरुद्ध अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया। उन्होंने लंका के बगीचे को नष्ट कर दिया और रावण के सैनिकों को हराया। अंततः, रावण के दरबार में पहुँचकर उन्होंने रावण को राम का संदेश दिया।

रावण के दरबार में हनुमान का आगमन

हनुमान ने रावण के दरबार में प्रवेश किया और रावण को राम का संदेश दिया। हनुमान ने रावण के दरबार में जाकर उसे चेतावनी दी कि वह सीता को तुरंत वापस कर दे, वरना उसकी स्थिति और भी बिगड़ सकती है।

हनुमान (रावण से): “रावण, मैं राम का दूत हूँ। राम ने तुम्हें चेतावनी दी है कि यदि तुम सीता को वापस नहीं करोगे, तो तुम्हारा सर्वनाश निश्चित है।”

रावण (क्रोधित होकर): “तुम्हारा साहस कितना बढ़ गया है, वानर! तुम मेरे दरबार में इस प्रकार बात कर रहे हो। तुम्हारे इस दुस्साहस की सजा तुम्हें भोगनी होगी।”

रावण ने हनुमान की बातों की परवाह न करते हुए क्रोधित होकर उसे दंडित करने का आदेश दिया। रावण ने हनुमान की पूंछ में आग लगाने का आदेश दिया। रावण के सैनिकों ने हनुमान की पूंछ को आग से सुलगाना शुरू किया। हनुमान ने यह स्थिति देखी और अपनी शक्ति का प्रयोग करने का निर्णय लिया।

लंका में हनुमान का शक्ति प्रदर्शन

हनुमान ने अपनी पूंछ में आग लगने पर उसकी शक्ति को जागृत किया। उसने अपनी पूंछ को एक बड़े हाथी की तरह विस्तार किया और लंका के बगीचे को नष्ट कर दिया। उसने रावण के सैनिकों को हराया और लंका में तबाही मचा दी।रावण ने हनुमान की पूंछ में आग लगाने का आदेश दिया। हनुमान ने इस स्थिति को देखते हुए अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए लंका में अराजकता मचा दी।

हनुमान (रावण के सैनिकों से): “तुम्हारे राजा रावण ने सीता को बंदी बना रखा है। यदि तुम अब भी रावण का समर्थन करते हो, तो तुम्हें भी मुझसे सामना करना पड़ेगा।”

हनुमान की शक्तियों से लंका में हाहाकार मच गया। उसने रावण के बगीचों और इमारतों को तोड़ डाला और उसकी सेना को पराजित कर दिया। हनुमान ने अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए लंका को जलाया और फिर समुद्र पार कर वापस लौट गए।

लंका दहन

हनुमान ने अपनी आग लगी पूंछ का उपयोग करते हुए लंका के बगीचों, इमारतों और महलों को जला दिया। उसने रावण के सैनिकों को हराया और लंका के कई हिस्सों को तबाह कर दिया।

हनुमान (आग में जलते हुए): “रावण, यह तुम्हारे पापों की सजा है। यदि तुम सीता को तुरंत छोड़ने का निर्णय नहीं लेते, तो तुम्हारी लंका पूरी तरह से जल जाएगी।”

हनुमान की इस शक्ति ने लंका में आतंक मचा दिया और रावण के दरबार में हड़कंप की स्थिति उत्पन्न हो गई।

सीता की रक्षा

हनुमान ने लंका को जलाने के बाद सीता से पुनः मुलाकात की और उन्हें आश्वस्त किया कि वह राम को सभी जानकारी देंगे। सीता ने हनुमान को आशीर्वाद दिया और उनकी बहादुरी की सराहना की।

सीता (हर्षित होकर): “हे वानर, तुम्हारी वीरता और बलिदान के लिए मैं तुम्हें आशीर्वाद देती हूँ। कृपया राम को बताओ कि मैं उनकी प्रतीक्षा कर रही हूँ।”

हनुमान (विनम्रता से): “माता सीता, मैं राम को आपकी स्थिति के बारे में पूरी जानकारी दूँगा। अब मैं समुद्र पार करके वापस जाऊँगा।”

समुद्र पार और वापस लौटना

हनुमान ने लंका को जलाने के बाद समुद्र पार किया और राम के पास लौट आए। उन्होंने राम को लंका की स्थिति और सीता के बारे में सभी जानकारी दी।

वापस लौटना
हनुमान ने राम और लक्ष्मण को सीता का संदेश और लंका की स्थिति की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सीता सुरक्षित हैं और राम का संदेश उन्हें मिल चुका है।

हनुमान (राम से): “प्रभु,माता सीता सुरक्षित हैं। रावण ने उन्हें अशोक वाटिका में रखा है। हमें शीघ्र ही लंका पर आक्रमण करना होगा। मैंने लंका में अपने बल का प्रदर्शन किया और रावण को चेतावनी दी। प्रभु, रावण ने मेरी पूंछ में आग लगवाई थी, मैंने लंका को जलाया और फिर समुद्र पार कर वापस लौट गया।”

राम (प्रसन्न होकर): “हनुमान, तुम्हारा यह पराक्रम अत्यंत प्रशंसनीय है। हम शीघ्र ही लंका पर आक्रमण करेंगे और सीता को वापस लाएंगे।  तुम्हारी इस वीरता के कारण हम सीता की खोज में और भी मजबूत होंगे। हमें अब रावण के खिलाफ युद्ध की तैयारी करनी होगी।”

हनुमान का लंका में शक्ति प्रदर्शन और रावण के दरबार में जाना यह दर्शाता है कि सच्ची साहसिकता और निष्ठा से बड़ी से बड़ी समस्याओं का सामना किया जा सकता है। हनुमान की वीरता ने राम की सेना को प्रेरित किया और सीता की वापसी के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। हनुमान की शक्ति और राम के प्रति उसकी निष्ठा ने यह साबित किया कि सत्य और धर्म की विजय सुनिश्चित है, भले ही उसे कितनी भी कठिनाइयों का सामना क्यों न करना पड़े।

विभीषण का सतमार्ग और राम से मित्रता

विभीषण का परामर्श

लंका में सीता के अपहरण के बाद, विभीषण अपने भाई रावण को बार-बार समझाने की कोशिश करता रहा। वह रावण को सत्मार्ग पर लाने और अधर्म के पथ से दूर करने का प्रयास कर रहा था।

विभीषण (रावण से): “भैया, सीता का अपहरण करना और राम से शत्रुता मोल लेना उचित नहीं है। धर्म का पालन करो और सीता को राम के पास वापस भेज दो। इससे लंका का विनाश नहीं होगा।”

रावण (क्रोधित होकर): “विभीषण, तुम मेरी नीतियों और शक्तियों को नहीं समझते। मैं लंका का महान राजा हूँ और किसी से भी डरता नहीं। तुम्हारे ये उपदेश सुनने की कोई आवश्यकता नहीं है।”

विभीषण का अपमान

विभीषण की बार-बार की सलाहों से रावण और अधिक क्रोधित हो गया। उसने विभीषण का अपमान किया और उसे लंका से निकाल दिया।

रावण (गुस्से में): “विभीषण, तुम मेरे भाई होते हुए भी मेरे शत्रु का पक्ष ले रहे हो। तुम यहाँ से चले जाओ। तुम्हारे जैसे कायर का यहाँ कोई स्थान नहीं है।”

विभीषण (दुखी होकर): “भैया, तुम्हारा यह निर्णय लंका के लिए विनाशकारी होगा। लेकिन अब मैं यहाँ नहीं रह सकता। मैं राम के पास जाऊंगा, जो सत्य और धर्म के प्रतीक हैं।”

विभीषण की राम से भेंट

विभीषण लंका छोड़कर राम के पास पहुँचा। उसने राम के समक्ष अपनी स्थिति स्पष्ट की और उनसे शरण माँगी।

विभीषण (राम से): “प्रभु राम, मैं विभीषण हूँ, रावण का भाई। मैंने रावण को धर्म का मार्ग दिखाने की कोशिश की, लेकिन उसने मेरा अपमान किया और मुझे लंका से निकाल दिया। मैं आपकी शरण में आया हूँ। कृपया मुझे स्वीकार करें।”

राम (सहानुभूति से): “विभीषण, तुमने धर्म का पालन किया है और सत्य का साथ दिया है। मैं तुम्हें अपनी शरण में स्वीकार करता हूँ।”

राम और विभीषण की मित्रता

राम ने विभीषण से मित्रता की और उसे लंका का नया राजा बनाने का वचन दिया।

राम (विभीषण से): “विभीषण, जब यह युद्ध समाप्त होगा और हम रावण को पराजित करेंगे, तो तुम लंका के नए राजा बनोगे।”

विभीषण (कृतज्ञ होकर): “प्रभु, मैं आपका आभारी हूँ। मैं आपको रावण के सभी रहस्यों के बारे में बताऊंगा ताकि आप इस युद्ध में विजय प्राप्त कर सकें।”

विभीषण का राज्याभिषेक

राम ने विभीषण का राज्याभिषेक किया और उसे लंका का नया भावी राजा बनाने का घोषणा किया।

नल और नील द्वारा सेतु निर्माण

 

रावण द्वारा सीता का हरण कर उन्हें लंका ले जाया गया था। राम और उनकी वानर सेना को लंका तक पहुँचने के लिए समुद्र को पार करना था। यह एक बहुत बड़ी चुनौती थी, लेकिन राम ने अपनी वानर सेना में अद्वितीय विश्वास और उत्साह जगाया।

राम (अपनी सेना से): “वानर वीरों, हमें सीता को रावण के चंगुल से मुक्त कराने के लिए लंका पहुँचना है। समुद्र पार करने के लिए हमें सेतु का निर्माण करना होगा।”

हनुमान (राम से): “प्रभु, हमारे पास नल और नील हैं, जिनके पास यह दिव्य शक्ति है कि उनके द्वारा फेंके गए पत्थर समुद्र में तैरेंगे। हम आपके आदेश का पालन करेंगे।”

नल और नील का वरदान

नल और नील, जो वानर सेना के प्रमुख योद्धा थे, को एक विशेष वरदान प्राप्त था। उनके द्वारा फेंके गए कोई भी पत्थर पानी में नहीं डूबते थे। यह वरदान वानर सेना के लिए अत्यंत सहायक साबित हुआ।

नल (नील से): “भाई, हमें प्रभु राम के लिए सेतु का निर्माण करना है। हमें अपनी शक्तियों का उपयोग करना होगा ताकि हम लंका पहुँच सकें।”

नील (नल से): “हाँ, नल। यह हमारे लिए एक महान अवसर है कि हम अपनी शक्तियों से प्रभु राम की सेवा कर सकें। चलो, इस कार्य को आरंभ करें।”

वानर सेना का सहयोग

नल और नील ने वानर सेना के साथ मिलकर पत्थरों को समुद्र में फेंकना शुरू किया। वे समुद्र के किनारे से पत्थरों को उठाकर एक-एक करके फेंकते गए। पत्थर पानी में तैरने लगे और एक पुल बनने लगा।

वानर योद्धा (उत्साहित होकर): “देखो! नल और नील के वरदान से पत्थर तैर रहे हैं! हम जल्द ही लंका पहुँच सकेंगे।”

राम (संतोष से): “नल और नील, आप दोनों ने अद्भुत कार्य किया है। आपकी मेहनत और समर्पण से ही हम लंका पहुँच सकेंगे।”

सेतु निर्माण का समापन

नल, नील और वानर सेना ने मिलकर लगातार मेहनत की और कुछ ही दिनों में एक विशाल सेतु का निर्माण कर दिया। सेतु समुद्र के एक किनारे से लंका तक फैला हुआ था। यह पुल भगवान राम की सेना के लिए लंका पहुँचने का मार्ग बना।

नल (राम से): “प्रभु, हमने आपके आदेश का पालन किया और सेतु का निर्माण पूरा कर लिया है। अब हम लंका की ओर प्रस्थान कर सकते हैं।”

नील (उत्साहित होकर): “हमारे वानर भाइयों की मेहनत और आपकी कृपा से ही यह संभव हो पाया है।”

राम (वानर सेना से): “वानर वीरों, आप सबने अद्भुत कार्य किया है। इस पुल के निर्माण से ही हम रावण से युद्ध कर सकेंगे और माता सीता को वापस ला सकेंगे।”

सेतु निर्माण का महत्व

सेतु का निर्माण न केवल तकनीकी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, बल्कि यह राम और उनकी सेना के अटूट विश्वास और सहयोग का प्रतीक भी था। यह दिखाता है कि जब सभी मिलकर काम करते हैं, तो कोई भी कार्य असंभव नहीं होता।

हनुमान (राम से): “प्रभु, यह सेतु आपकी महानता और हमारे समर्पण का प्रतीक है। हम आपके नेतृत्व में किसी भी कठिनाई का सामना कर सकते हैं।”

राम (हनुमान से): “हनुमान, तुम सबका समर्पण और प्रेम ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है। चलो, अब हम रावण से युद्ध के लिए तैयार होते हैं।”

नल और नील के वरदान और वानर सेना के समर्पण ने सेतु निर्माण को संभव बनाया। यह पुल न केवल लंका तक पहुँचने का साधन था, बल्कि यह विश्वास, सहयोग और समर्पण का प्रतीक भी था। यह घटना हमें यह सिखाती है कि जब हम सभी मिलकर एक उद्देश्य के लिए काम करते हैं, तो कोई भी कार्य असंभव नहीं होता। राम, नल, नील, हनुमान और वानर सेना ने मिलकर अद्भुत कार्य किया और यह सेतु निर्माण एक महान उपलब्धि के रूप में इतिहास में दर्ज हो गया।

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