
संक्षिप्त रामायण के कुछ मुख्य भाग: किष्किंधाकांड
राम और लक्ष्मण की मुलाकात हनुमान से
सीता की खोज में वन-वन भटकते हुए राम और लक्ष्मण किष्किंधा पहुंचे, जहां उनकी मुलाकात हनुमान से हुई। हनुमान, जो सुग्रीव के परम मित्र और सेनापति थे, वे राम और लक्ष्मण को देखकर उनके बारे में जानने के लिए उत्सुक हो गए।
हनुमान (राम और लक्ष्मण से): “आप दोनों कौन हैं? और इस घने वन में किस उद्देश्य से भटक रहे हैं?”
राम (विनम्रता से): “मैं राम हूँ और यह मेरे भाई लक्ष्मण हैं। हम दोनों अयोध्या के राजकुमार हैं। मेरी पत्नी सीता का रावण ने हरण कर लिया है और हम उसकी खोज में निकले हैं।”
हनुमान राम की कथा सुनकर अत्यंत प्रभावित हुए और उन्होंने सुग्रीव से मिलवाने का प्रस्ताव किया।
हनुमान (प्रसन्न होकर): “श्री राम,भ्राता लक्ष्मण, मैं आपको मेरे स्वामी सुग्रीव से मिलवाता हूँ। वह भी अपने राज्य से निर्वासित हैं और आपकी सहायता कर सकते हैं।”
सुग्रीव से मिलाप
हनुमान राम और लक्ष्मण को सुग्रीव के पास ले गए। सुग्रीव ने उनका स्वागत किया और उनकी कथा सुनकर अपनी मित्रता का प्रस्ताव रखा।
सुग्रीव (विनम्रता से): “राम, मुझे आपकी दुर्दशा का अत्यंत दुख है। मैं आपके साथ मित्रता करना चाहता हूँ और आपकी सहायता करने के लिए तैयार हूँ।”
राम (मुस्कुराते हुए): “सुग्रीव, मैं आपकी मित्रता स्वीकार करता हूँ। मैं भी आपकी सहायता करने का वचन देता हूँ।”
सुग्रीव की व्यथा
सुग्रीव ने राम से अपने भाई बालि के अत्याचार की कथा सुनाई। उसने बताया कि कैसे बालि ने उसे राज्य से निकाल दिया और उसकी पत्नी को भी छीन लिया।
सुग्रीव (दुखी स्वर में): “हे राम, मेरे भाई बालि ने मुझ पर अत्याचार किए हैं। उसने मुझे राज्य से निर्वासित कर दिया और मेरी पत्नी को भी अपने पास रख लिया। मैं हर दिन इस पीड़ा में जी रहा हूँ।”
राम (सहानुभूति से): “सुग्रीव, मैं तुम्हारी पीड़ा समझता हूँ। तुम्हारे साथ यह अन्याय हुआ है। मैं तुम्हारी सहायता करूँगा और बालि को उसके कुकर्मों की सजा दूँगा।”
सुग्रीव का भय
राम ने सुग्रीव को बालि से युद्ध करने के लिए प्रेरित किया, लेकिन सुग्रीव बालि की शक्ति से डर रहा था। उसने बालि की शक्ति और अपने भय का वर्णन किया।
सुग्रीव (संकोच करते हुए): “राम, बालि बहुत शक्तिशाली है। मैं उसकी शक्ति के सामने असहाय महसूस करता हूँ। वह मुझसे कहीं अधिक बलशाली है।”
राम (दृढ़ता से): “सुग्रीव, तुम्हें मुझ पर विश्वास रखना होगा। मैं तुम्हारे साथ हूँ और बालि को हराने के लिए तैयार हूँ। तुम्हें सिर्फ उसे युद्ध के लिए ललकारना है, बाकी मैं देख लूंगा।”
युद्ध का प्रस्ताव
राम ने सुग्रीव को बालि को युद्ध के लिए ललकारने का प्रस्ताव दिया। उन्होंने सुग्रीव को आश्वासन दिया कि वे छिपकर बालि का वध करेंगे।
राम (सुग्रीव से): “सुग्रीव, तुम बालि को युद्ध के लिए ललकारो। मैं छिपकर रहूँगा और सही समय पर उसे मार गिराऊँगा।”
सुग्रीव (साहस जुटाते हुए): “राम, मैं आपके कहे अनुसार बालि को युद्ध के लिए ललकारूँगा। मुझे आप पर पूरा विश्वास है।”
बालि का वध
सुग्रीव ने बालि को युद्ध के लिए ललकारा और दोनों भाइयों के बीच भीषण युद्ध शुरू हो गया। राम छिपकर एक पेड़ के पीछे खड़े रहे और सही अवसर की प्रतीक्षा करने लगे।
सुग्रीव (ललकारते हुए): “बालि, आओ और मुझसे युद्ध करो। तुम्हारे अत्याचार का अंत आ गया है।”
बालि (क्रोधित होकर): “सुग्रीव, तुम मुझसे युद्ध करने का साहस कैसे कर सकते हो? तुम्हारी मृत्यु निश्चित है।”
युद्ध के दौरान, राम ने देखा कि सुग्रीव और बालि में भेद करना मुश्किल है, इसलिए उन्होंने सुग्रीव को एक फूल की माला पहनाई ताकि उन्हें पहचानने में आसानी हो।
राम (स्वयं से): “मुझे सुग्रीव को पहचानने के लिए कुछ करना होगा। इस माला से मैं उन्हें पहचान सकूँगा।”
राम का निर्णय
राम ने सही अवसर पर अपने धनुष से तीर चलाया और बालि को मार गिराया। बालि घायल होकर जमीन पर गिर पड़ा और उसने राम को देखा।
बालि (दर्द से): “राम, तुमने छिपकर मुझ पर तीर चलाया। यह क्या धर्म है?”
राम (दृढ़ता से): “बालि, तुम्हारे अत्याचार और अधर्म का अंत होना आवश्यक था। तुमने अपने भाई सुग्रीव के साथ अन्याय किया और धर्म की मर्यादा का उल्लंघन किया।”
बालि की आत्मशुद्धि
मरते समय बालि ने राम की बातों को समझा और अपने कृत्यों पर पछतावा किया। उसने अपने भाई सुग्रीव से माफी मांगी और अपने पुत्र अंगद को राम की शरण में भेजा।
बालि (सुग्रीव से): “भाई, मैं अपने कृत्यों के लिए क्षमा चाहता हूँ। मेरे पुत्र अंगद का ध्यान रखना और उसे राम की सेवा में भेजना।”
सुग्रीव (भावुक होकर): “भाई, मैं तुम्हें क्षमा करता हूँ। अंगद का ध्यान रखना मेरी जिम्मेदारी होगी।”
बालि के वध के बाद, राम ने बाली के मरने पर सुग्रीव को किष्किन्धा का राजा बना दिया और अंगद को युवराज बना दिया। इस घटना ने सुग्रीव को उसकी पत्नी और राज्य वापस दिलाया और राम को सीता की खोज में एक महत्वपूर्ण मित्र और सहयोगी मिला।
राम (सुग्रीव से): “सुग्रीव, अब तुम किष्किंधा के राजा हो। अंगद और तुम्हारे सभी वानर मेरे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। हमें मिलकर सीता की खोज करनी है।”
सुग्रीव (आभार प्रकट करते हुए): “राम, आपके इस उपकार के लिए मैं सदैव ऋणी रहूँगा। हम सब आपकी सहायता के लिए तत्पर हैं।”
इस प्रकार, बालि वध की कथा हमें यह सिखाती है कि अधर्म और अत्याचार का अंत होना ही चाहिए। राम और सुग्रीव की मित्रता और साहस ने यह साबित किया कि न्याय की विजय अवश्य होती है।
बालि के वध के बाद, सुग्रीव किष्किंधा का राजा बना और उसने वानर सेना तैयार की। हनुमान और अन्य वानरों को सीता की खोज के लिए चारों दिशाओं में भेजा गया।
Read Next Part…Few Main Parts Of Abridged Ramayana: Sunderkand