
संक्षिप्त रामायण के कुछ मुख्य भाग:युद्धकांड-1
राम का निर्णय
लंका पर आक्रमण से पहले, राम ने एक बार फिर से रावण को चेतावनी देने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने वीर अनुयायी अंगद को रावण के पास भेजने का निश्चय किया ताकि रावण को समझा सकें और विनाश को रोका जा सके।
राम (अंगद से): “अंगद, तुम्हें रावण के पास एक संदेश लेकर जाना है। हम नहीं चाहते कि यह युद्ध हो और अनावश्यक रक्तपात हो। रावण को बताओ कि अगर वह सीता को वापस कर देगा, तो हम शांति से लौट जाएंगे।”
अंगद (आत्मविश्वास से): “प्रभु, मैं आपका संदेश लेकर जाऊंगा और पूरी कोशिश करूंगा कि रावण इस चेतावनी को समझे।”
अंगद का लंका में प्रवेश
अंगद ने राम का संदेश लेकर लंका की ओर प्रस्थान किया। वे सीधे रावण के दरबार में पहुंचे और वहाँ उपस्थित सभी लोगों के सामने अपने विचार प्रकट किए।वह गर्व और आत्मविश्वास से भरा हुआ है। दरबार में रावण अपने मंत्रियों और सेनापतियों के साथ बैठा हुआ है।
अंगद (रावण के दरबार में प्रवेश करते हुए): “रावण, मैं राम का दूत अंगद हूँ, वानरराज बाली का पुत्र। मैं राम का आपके पास एक महत्वपूर्ण संदेश लेकर आया हूँ। राम चाहते हैं कि आप सीता को सम्मानपूर्वक वापस करें और इस विनाशकारी युद्ध को रोकें।”
रावण, अंगद को देखकर क्रोधित होता है और उसे नीचा दिखाने की कोशिश करता है। वह अंगद की बातें सुनने से पहले ही अपने अहंकार में डूबा हुआ है।
रावण (क्रोधित होकर): “अंगद, तुम कौन होते हो मुझे आदेश देने वाले? मैं लंका का राजा हूँ और मैं किसी के आगे नहीं झुकता।”
अंगद का परिचय
अंगद ने अपने पिता बाली की वीरता और रावण के साथ उनके संघर्ष की याद दिलाई। उसने रावण को चेतावनी दी और उसे राम का संदेश सुनाया।
अंगद (निडर होकर): “रावण, मैं वही अंगद हूँ, जिसका पिता बाली था। वह बाली जिसने तुम्हें छह महीने तक कांख में दबा कर रखा था और तुम्हारे अहंकार को चूर-चूर कर दिया था।”
रावण का क्रोध
रावण का क्रोध और भी बढ़ जाता है। उसे अपने अपमान की याद दिलाने से उसकी अहंकार और भी भड़क उठता है।
रावण (गुस्से में): “अंगद, तुम मेरे दरबार में आकर मेरा अपमान करने की हिम्मत कैसे कर सकते हो? तुम्हारे पिता बाली की तरह तुम्हें भी मैं खत्म कर दूँगा।”
अंगद का साहस
अंगद, रावण के क्रोध से डरने के बजाय और भी साहस दिखाता है। उसने राम का संदेश सुनाया और रावण को चेतावनी दी।
अंगद (दृढ़ता से): “रावण, प्रभु राम ने तुम्हें एक आखिरी मौका दिया है। यदि तुम सीता माता को तुरंत वापस नहीं करोगे, तो तुम्हारा और तुम्हारे राज्य का सर्वनाश निश्चित है। राम की सेना तुम्हारे खिलाफ युद्ध के लिए तैयार है।”
अंगद की चुनौती
अंगद ने रावण के दरबार में अपना पैर मजबूती से जमीन पर रख दिया और चुनौती दी कि कोई भी योद्धा उसे वहां से हिला नहीं सकता। यह उसकी वीरता और आत्मविश्वास का प्रतीक था।
अंगद (पैर जमीन पर रखते हुए): “रावण, यदि तुम्हारे दरबार में किसी योद्धा में इतनी शक्ति है, तो मेरा पैर हिला कर दिखाओ। यह तुम्हारी वीरता की परीक्षा है।”
रावण के योद्धाओं का प्रयास
रावण के दरबार में उपस्थित सभी प्रमुख योद्धाओं ने बारी-बारी से अंगद का पैर हिलाने का प्रयास किया, लेकिन कोई भी उसे हिला नहीं सका। यह देखकर रावण और अधिक क्रोधित हो गया।
योद्धा 1 (प्रयास करते हुए, हांफते हुए): “हमसे यह पैर नहीं हिलता, महाराज। यह वानर असाधारण शक्ति का धनी है।”
योद्धा 2 (निराश होकर): “यह असंभव है, महाराज। अंगद का पैर अडिग है।”
रावण का निराशा
रावण (गुस्से में चिल्लाते हुए): “तुम सब नाकारा हो!”
रावण की निराशा और क्रोध और भी बढ़ जाता है। अपने अहंकार में रावण खुद अंगद का पैर हिलाने को आ गया।
अंगद (दृढ़ता से): “रावण, तुम क्या मेरे पैर पकड़ रहे हो? यदि तुम्हें सच में अपनी रक्षा करनी है, तो जाकर प्रभु श्री राम के शरण में जाओ। वे दयालु हैं और तुम्हें माफ कर देंगे।”
अंगद ने रावण की स्थिति देखकर उसे अंतिम चेतावनी दी। उसने रावण को राम के शरण में जाने की सलाह दी, ताकि वह अपना और अपने राज्य का विनाश रोक सके।
अंगद की वापसी
अंगद ने रावण की अस्वीकारात्मक प्रतिक्रिया के बाद अपना पैर उठाया और राम के पास लौट आया। उसने राम को रावण के अहंकार और उसकी प्रतिक्रिया के बारे में बताया।
अंगद (राम से, गंभीरता से): “प्रभु, मैंने रावण को आपका संदेश दिया और उसे अंतिम चेतावनी भी दी, लेकिन उसने मेरी बातों को नजरअंदाज कर दिया। अब युद्ध ही एकमात्र विकल्प है।”
राम (दृढ़ता से): “अंगद, तुमने अपना कर्तव्य निभाया। अब हमें धर्म की रक्षा के लिए युद्ध करना होगा। रावण का अहंकार उसका सर्वनाश करेगा।”
युद्ध की तैयारी
राम ने अंगद के संदेश को सुना और अपनी सेना को युद्ध के लिए तैयार किया। यह स्पष्ट था कि रावण के अहंकार और अधर्म का अंत निकट था। राम ने अपनी सेना को युद्ध के लिए तैयार किया और वानर सेना को आदेश दिया कि वे रावण की सेना का सामना करें। यह स्पष्ट था कि अब धर्म और अधर्म का अंतिम युद्ध होने वाला था।
राम (अपनी सेना से): “वानर वीरों, रावण का अहंकार उसे विनाश की ओर ले जा रहा है। अब हमें इस धर्मयुद्ध को पूरा करना होगा और सीता को वापस लाना होगा। हमारी विजय सुनिश्चित है। वानर वीरों, अब समय आ गया है कि हम रावण के अधर्म और अहंकार का अंत करें। हमारी विजय सुनिश्चित है, क्योंकि हम सत्य और धर्म के मार्ग पर हैं।”
अंगद की वीरता और साहस ने राम और उनकी सेना को और अधिक प्रेरित किया। रावण का अहंकार और अधर्म ने उसे विनाश की ओर ले गया। यह घटना हमें यह सिखाती है कि सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने वाले को अंततः विजय मिलती है, जबकि अहंकार और अधर्म का अंत निश्चित है। राम की चेतावनी और अंगद की वीरता ने रावण के अंत की दिशा तय की और धर्म की विजय सुनिश्चित की।
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