मेहनत का चमत्कार

मेहनत का चमत्कार

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मेहनत का चमत्कार

एक बार आकाश में विचित्र सभा हुई। बादल आपस में बातें करने लगे— “हम तो थक चुके हैं, अब बरसने का मन नहीं है। चलो, एक हड़ताल कर देते हैं। आने वाले दस साल तक धरती पर पानी नहीं बरसाएँगे।

यह खबर बिजली की तरह पूरे नगर और गाँवों में फैल गई। किसानों के चेहरों पर भय और निराशा छा गई। किसी ने कहा— “अब खेती-बाड़ी का क्या होगा?”
दूसरा बोला— “अगर पानी ही नहीं बरसेगा तो खेतों को जोतने का कोई फायदा नहीं।” धीरे-धीरे सभी किसानों ने अपने हल, बैल और खेती के औज़ार समेटकर घर के कोनों में रख दिए। उनके मन ने मान लिया कि जब तक बारिश नहीं होगी, मेहनत बेकार है। लेकिन… एक किसान ऐसा था जो अलग सोचता था।
हर सुबह सूरज की पहली किरण के साथ वह अपने बैलों को खेत में ले जाता, हल पकड़ता और खेत की मिट्टी को जोतने लगता।

गाँव वाले हैरानी से पूछते— “अरे भाई! तू पागल हो गया है क्या? बादल ने साफ कह दिया है कि दस साल तक पानी नहीं बरसने वाला। फिर क्यों बेकार की मेहनत करता है?”
किसान मुस्कराकर कहता— “भाई, पानी बरसे या न बरसे, ये तो मेरे हाथ में नहीं है। लेकिन हल चलाना मेरे हाथ में है। मैं मेहनत करना नहीं छोड़ सकता। अगर मैं दस साल तक हल चलाना ही भूल गया, तो जब बादल बरसेंगे, मैं फिर से खेती करने लायक नहीं रहूँगा।”

एक दिन कुछ बादल धरती के क़रीब से गुज़रे। उन्होंने किसान को पसीने से तर-बतर देखा। बादलों ने आश्चर्य से पूछा— “अरे, हम तो बरसने वाले नहीं, फिर तू क्यों मेहनत कर रहा है?”

किसान ने शांत स्वर में उत्तर दिया— “बरसना तुम्हारा धर्म है और मेहनत करना मेरा। तुम अगर बरसोगे तो धरती लहलहा उठेगी, लेकिन मैं मेहनत करता रहूँगा ताकि हल चलाना न भूल जाऊँ। चाहे दस साल बाद ही सही, जब तुम बरसोगे तो मेरी मेहनत व्यर्थ न जाएगी।”

किसान के शब्द सुनकर बादल स्तब्ध रह गए। उन्हें अचानक डर लगा कि— “कहीं हम सचमुच बरसना ही न भूल जाएँ!”

उस किसान की लगन और निष्ठा ने बादलों को झकझोर दिया। वे हड़ताल तोड़कर घुमड़ने लगे, बिजली कड़की और देखते ही देखते धरती पर मूसलाधार बारिश होने लगी। सूखी हुई धरती फिर से हरी-भरी हो गई। उस किसान की मेहनत रंग लाई। उसके खेतों में सुनहरी फसल लहलहाई, जबकि बाकी किसान जिन्होंने अपने हल पैक कर दिए थे, वे हाथ मलते रह गए।

शिक्षा (Moral of the Story)

👉 परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी विपरीत क्यों न हों, मेहनत करना कभी मत छोड़ो।
👉 समय चाहे कितना ही कठोर क्यों न हो, मेहनत करने वाला ही अंततः जीतता है।
👉 जो पानी से नहाते हैं, वे सिर्फ़ लिबास बदलते हैं;
लेकिन जो पसीने से नहाते हैं, वे इतिहास बदल डालते हैं।


गुस्से की दवा

बहुत समय पहले एक छोटे से गाँव में एक महिला रहती थी। वह देखने में सीधी-सादी, मेहनती और परिवार से प्रेम करने वाली थी, लेकिन उसकी एक आदत ने उसके जीवन को कठिन बना दिया था— उसे बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता था। जरा-सी बात बिगड़ते ही वह भड़क जाती, पति पर चिल्ला देती, बच्चों को डाँट देती और कभी-कभी तो पड़ोसियों से भी झगड़ बैठती। उसके गुस्से की वजह से घर का वातावरण हमेशा तनाव से भरा रहता। पति चुपचाप रहता, बच्चे सहमे-सहमे रहते और घर में हँसी की जगह रोना और चुप्पी छाई रहती। महिला खुद भी यह सब देखकर दुखी हो जाती। हर रात वह सोचती— “काश! मैं अपने गुस्से पर काबू पा पाती।” लेकिन सुबह होते ही फिर वही हाल हो जाता।

एक दिन उसके घर के दरवाजे पर एक साधू महाराज आए। उनके चेहरे पर अजीब-सी शांति और आँखों में गहरी करुणा थी। महिला ने तुरंत उन्हें अंदर बुलाया और मन की सारी पीड़ा सुनाई— “महाराज! मैं चाहकर भी अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रख पाती। छोटी-सी बात भी मेरे क्रोध को ज्वालामुखी बना देती है। मैं अपने परिवार से बहुत प्यार करती हूँ, लेकिन मेरे गुस्से ने सबका सुख छीन लिया है। कृपया मेरी मदद कीजिए।”

साधू मुस्कुराए और बोले— “बेटी, चिंता मत करो। हर रोग की दवा होती है और गुस्से की भी दवा है।”
यह कहकर उन्होंने अपने झोले से एक छोटी-सी शीशी निकाली और महिला को देते हुए कहा— “जब भी गुस्सा आए, इस शीशी से चार बूंद जीभ पर डाल लेना। लेकिन ध्यान रहे, दवा तभी असर करेगी जब तुम 10 मिनट तक इसे मुँह में रखोगी और मुँह नहीं खोलोगी। अगर बोलोगी, तो दवा बेअसर हो जाएगी।”

महिला ने शीशी संभालकर रख ली और साधू को प्रणाम किया। अब जब भी उसे गुस्सा आता, वह दौड़कर शीशी उठाती, जीभ पर बूंदें डालती और मुँह बंद कर लेती। 10 मिनट तक वह कुछ नहीं बोलती। शुरुआत में उसे बहुत कठिनाई हुई, लेकिन धीरे-धीरे उसने महसूस किया कि जब तक वह चुप रहती, उसका गुस्सा अपने आप शांत हो जाता। घर के लोग भी हैरान थे। जो महिला जरा-सी बात पर चिल्ला देती थी, अब वही खामोश बैठ जाती। धीरे-धीरे घर में झगड़े बंद हो गए। बच्चे फिर से हँसने लगे, पति के चेहरे पर मुस्कान लौट आई और घर का वातावरण सुखमय हो गया। सिर्फ सात दिन में महिला का जीवन बदल गया।

सातवें दिन साधू फिर से उस गाँव से गुजरे और महिला उनसे मिलने दौड़ी। वह उनके चरणों में गिरकर बोली— “महाराज! आपकी दवा ने मेरा जीवन बदल दिया। अब मुझे गुस्सा नहीं आता। मेरे घर में शांति और सुख लौट आया है। मैं आपकी ऋणी हूँ।”

साधू मुस्कुराए और बोले— “बेटी, वह कोई दवा नहीं थी। उस शीशी में तो केवल पानी भरा था। असली दवा तुम्हारे अंदर ही थी— मौन।

जब तुम गुस्से में चुप रहीं, तब झगड़ा बढ़ने का अवसर ही नहीं मिला। गुस्सा आग की तरह है, और शब्द उस पर घी का काम करते हैं। जब तुमने बोलना बंद कर दिया, तो आग अपने आप बुझ गई।”

महिला ने उस दिन समझ लिया कि
👉 गुस्से की सबसे बड़ी दवा मौन है।
👉 जब इंसान क्रोध में चुप रह जाता है, तो धीरे-धीरे उसका गुस्सा भी ठंडा हो जाता है।
👉 झगड़ा वहीं खत्म हो जाता है, जहाँ बोलना बंद हो जाता है।

उसने प्रण लिया कि वह जीवनभर इस सीख को अपनाएगी और दूसरों को भी यही मार्ग बताएगी।

🌸 प्रेरणा:
हम सबके जीवन में कभी न कभी गुस्सा आता है। लेकिन याद रखिए—
क्रोध कभी समाधान नहीं देता, केवल विनाश करता है।
अगर आप गुस्से में चुप रहना सीख गए, तो आपका जीवन सुख, शांति और प्रेम से भर जाएगा।